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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री श्रमालक ऋषिजी"
ओसण्ण विहारिणी, कुसीला कुसी लविहारिणी, अहच्छे ।। अहन्छदविहारिणी, संसत्ता संमत्तविहारिणी, बहुणी वासाणि सामन्न पारयागं पाउणति २ चा अवमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसेति २ ता तीसंभत्ताई अणसणाए छएइ २ त्ता, तस्स ठाणस्म अणालोइय अपडिकते कालमासे कालंकिच्चा चमरचचाए रायहाणीए कालीबडिसए भवणे उववायसभाए देवसयणिजसि देवदूसंतरिया अंगुलरस असंखेजए भागमित्ताए ओगाहणाए काली देवित्ताए उववण्णा ॥ २६ ॥ ततेणं सा काली देवी अहुणोववण्णा समाणी पचविहाए पजत्तीए जहा सूरियाभो जाव भासा
मणपजत्तीए ॥ २७ ॥ ततेणं सा कालीदेवी चउण्डं सामाणिय साहस्सीणं जाव विहारिनी, कुशीला, कुशील विहारिनी, स्वच्वंदी, स्वच्छंद विहारिनी, संसक्ता संसक्त विहारिनी पनी. फीर बहुत वर्ष पर्यंत साधुपना पालकर अर्ध मास की संलेखना से आस्मा को झोंसकर अपने किये कार्यों की आलोचना प्रतिक्रमण किये विना काल के अवसर में काल कर चमरचेचा राज्यधानी में कालावतंसक विमान की उपपात सभा में देव शयन में देव दूष्य पत्र नीचे अंगुल के असंख्यातवे भागकी
अवगाहना से काली देवीपने उत्पन्न हुई ॥ २६ ॥ वहां उत्पन्न हुई काली देवी पांच पर्याप्ति से पर्याप्त 17वती वगैरह सब कथन मूर्याभदेव जैस जानना. यावत् भाषा मनः पर्याप्ति पूरीकी॥२७॥अब वह काली देवी
.प्रकाशक-राजावहादुरलाला मुखदेवसलयजी ज्वालाप्रसाद जी.
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