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पटांग माताधकथा का द्वितीय श्रुनस्कन्ध 498
प्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि ततेणं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पब्वयामि ॥... अहामहं देवाणप्पिए! ॥ १५॥ ततेणं सा कालीदारिया पासेणं अरहा पुरिसादाणिएणं . एवं वुत्तासमाणी हट्ट जाव हियया, पासं अरहं वंदति मंसंति वंदित्ता, मंसित्ता, तमेवधम्मियं जाणप्पवरं दुरुहतिरता पासस्स अरहो पुरिसादाणीयस्स अंतियातो. अंब सालवणातो चेहयातो पडिणिक्खमति २ ता जेणेव आमलकप्पाणयरी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता आमलकप्पं गयरिं मज्झं मझेगं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २त्ता धम्मियं जाणप्पवरं ठवेतिरत्ता धम्मियातो जाण प्पवरातो :
पच्चोरुहति रत्ता जेणेव अम्मापियरो तेमेव उवागच्छइरत्ता करयल जाव एवं वयासी. आप कहते हो वैसे ही है, विशेषमें मैं मेरे मातपिता को पूंछकर आप की पास दीक्षा अंगीकार करूंगी. भगवंतने कहा जो तुम को मुख होवे वैसा करो ॥ १५ ॥ पार्श्वनाथ अरिहंत के ऐमा कहने पर वह काली कुमारी हृष्ट तुष्ठ हुई. पार्श्वनाथ स्वामी को वंदना नमस्कार कर उस ही धार्षिक रथ पर बैठकर श्री पर्श्वनाथ भारत की पास से अंब शालयन उद्यान में से निकलकर अमलका नगरी में आइ..
और उस की मध्य बीच में होकर बाहिर की उपस्थान शाला में गई. वहां रथ खड़ा करवाया कि कारथ से नीचे उतरी और अपने मात मिता की पास आई. उन को हाथ जोडकर कहने लगी-कि अहो ।
पहिला वर्ग का पहिला अध्ययन 431
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