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ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
गिहातो पडिमिक्खमति २ ता. जेणेब बाहिरिया उवट्ठाण साला जेणेवधम्मिए जाणप्पवरे - तेणेव उवागच्छइ २त्ता धम्मियंजाणप्पवरं दुरूढा तएणं सा कालीदारिया धम्मियं जाणप्प- .. वरं एवं जहा दोवती तहा पज्जुवासति॥ १३॥ततेणं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालिए दारियाए तीसेय महति महालियाए परिसाए धम्मकहा कहेइ॥१४॥ततेणं सा कालीदारिया पासस्स अरहो पुरिसादाणीए अंतिए धम्मं सोचाणिसम्म हट्ट जाव हियया,पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो वंदति णमंसति, वंदित्ता गमंसित्ता एवं क्यासीसदहामिणं भंते ! जिग्गंय. पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वादह जं गवरं देवाणुधान किये. अल्पभार व बहुमूल्यवाले आभरण अलंकार धारण किये. और दासीयों के परिवार से अपने गृह से निकलकर जहां वाहिर की उपस्थानशाला थी वहां आई. वहां धार्मिक रथ की पास जाकर उस में बैठी. काली देवी रथ पर बैठ कर समोसरण में गई और द्रौपदी जैपे पर्युपासना करने लगी ॥ १३ ॥ श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ स्वामीने उस काली कुपारिका को महती परिषदा में धर्पकथा कही ॥ १४ ॥ काली कुमारिका पुरुषादानीय श्री पार्श्वनाथ स्वामी की पाम धर्म सुनकर हृष्ट तुष्ट हुई. पार्श्वनाथ अरिहंत को बंदना नमस्कार करके ऐसा बोली अहो भगवन् ! निय प्रवचन की मैं श्रद्धः करती हूं. यावत् जैसा
प्रकाधक-सजावहादुरळालामुखदवमहायजीवाला प्रसादजी
अर्थ |
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