SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 758
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र अर्थ 48 अनुवक बालाचारी मुनि श्री अमोलक पुत्ररतावन्तकालं समयंसि सरीरंसि वेयण पाउन्भूया, उज्जला विउला गाढापगाढा जात्र दुरहियासा, पित्तज्जरप रेगयसरीरे दाहवतीयावि विहरति ॥ तसेणं से. कंडरीएराया रजय रद्वेग जात्र अंतेउरेम जाव अज्झोवबन्ने अट्टदुहट्टवसट्टे अकामते. असवसे कालमासे कालकिच्चा आहे सचमाए पुढवीए उक्कोस कालंटिइयंसि मेरयास इयत्ता उबवण्णे ॥ २३ ॥ एवमेत्र समणाउसो ! जाव पव्वत्तिए समाणे पुणरधि माणुस कामभोगे आसाइए जाव अणुपरियहिस्सति जहा से कंडरीए राया. ॥ २४ ॥ ततणं से पुडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ २ उज्वल, विपुल, प्रकट यावत् नहीं सहन हो सके बैषी थी. इस तरह पित्तज्वर शरीरवाला यावत् बनकर विचरता था. वह कंडरीक राजा राज्य, राष्ट्र यावत् अंतःपुर में मूच्छिब बना हुवा आर्तकारी, दुःखार्त बना हुवा परवश पडा हुवा बाल के अवसर में काल करके नीचे सातवी पृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति से (नारकीपने उत्पन्न हुवा || २३ || अहो आयुष्मन्त श्रमणों ! जैसे कंडरीक काम भोग में मूर्च्छित होने से सातवी नरक में नारकीपन उत्पन्न हुआ वैसे ही जो कोई साधु साध्वी प्रव्रजित बनकर पुनः मनुष्य के काम भोगों में मूच्छित होगा वह इस लोक में माधु, साध्वी, श्रावक व श्राविकाओं में इलिना निंदा को मत होगा यावत् अनंत संसार में परिभ्रमण करेगा ||२४|| अत्र पुंडरीक अनगार स्थावर भगवंत की पास | Jain Education International For Personal & Private Use Only काशक- राजाबहदुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालामसादमी ७५० www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy