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सूत्र
अर्थ
षटङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का मम श्रुरुस्कन्ध 4 P
पडित्रजिइ २ ता कंडरीयस्स सक्कीयं आयार मंडये गिण्हति २त्ता इमं एयारूवं अभिग्गई अभि पति में थरे वंदित्ता णमंसित्ता थेर णं अंतिए चउजामधम्मं उवसंपजित्ताणं तच्छा आहारं आहारित्तए तिकट्टु इमं एयारूवं अभिग्गनं गिण्हत्ताणं पोंडरोगिणणियओ पाडणिक्खमति २त्ता पुत्राणुपुत्रिचरमाणे, गामानुगामं दूइज्जमाणे, जेणेव थेरा भगवता तेणेव पाहारेत्थ गमेणाए ॥ २२ ॥ ततेणं तस्स कंडरीयस्स रण्णो पणियं पाणभायणं आहारियस्त समाणस्स अति जागरिएणय अतिभोयणपसंगेणय से आहारणो सम्मपरिणए ॥ ततेणं तस्स कंडरयिस्स रण्णो तसि आहारंसि अपरिणममाणांस
रूप धर्म अंगीकार किया. कंडरीकने डाले हुवे भंड उपकरण वगैरह ग्रहण किये, और ऐमा अभिग्रह धारण किया कि स्थाबिरों की पास जाकर उन को वंदना नमस्कार कर उन की पास से चार याम रूप व्रत अंगीकार किये पीछे आहार करना मुझे कल्पता है. ऐसा अभिग्रह ग्रहण कर पभात में ही पुंडरीकिगिनी नगरी में से नीकलकर पूर्वानुपूर्वी चलते ग्रामानुग्राम विचरते हुने स्थ बेर भगवंत को पास जाने को निकले || २२ || अति स्निग्ध कामोत्पाद के वस्तु का आहार करने से रात्रि में बहुत जागरणा करने से और अती भोजन के प्रसंग से कंडरीक राजा को सम्यक् प्रकार से आहार परिणामा नहीं. इस तरह सम्यक् प्रकार से आहार की परिणति नहीं होने से पूर्व रात्रि काल में शरीर में वेदना उत्पन्न हुई. वह वेदना
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** पुंडरीक कंडरीक का उन्नीसहवा अध्ययन
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