________________
: 44.पष्टगताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध HI+
थेर। भगवते वंदति नमसति बंदिता नमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चपि चाउजाम धम्म पडियजति, छट्ठक्खमण पारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करति २ त्ता जाव अडमाणे सयिलुक्खं पाणभोयणं पडिगाहेति २ चा महापजत्तीमतिकटु परिनियत्तए जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति २त्ता भत्तपाणे पडिदंसेति २त्ता थेरो भगवतेहिं अब्भणुण्णाए समाणे अमुच्छिए ४ चिलमिवपणगभूएणं अप्पाणेणं तं फासुयं एसणिज्जं असणं पाणं खाइमं साइमेणं सरीरकेटुगंसि
पक्खिवति ॥ २५ ॥ ततेणं तस्स पुंडरीयस्स अणगारस्स तं कालाइक्वंतं अरस गये. स्थविर भगवंत को वंदना नमस्कार कर स्थविरों की पास दूसरी बार चार याम रूप धर्म अंगीकार किया. छठ (ले) के पारने के दिन प्रथम महर में स्वाध्यायकर यावत् ऊंच नीच मध्य कुलमें गोचरी के लिये परिम्रपण करत ठंडा, रूक्ष, पान भोजन ग्रहण किया. स्वतःको होवे जितना मिलने से पी फिरे और स्थविर भगवंत की पास आये, भक्त पान उन को बतलाया, स्थविर भगवंत की अनुज्ञा है। लेकर जैसे सर्प अपने बिल में प्रवेश करता है वैसे ही माहार पानी में किसी प्रकार से मच्छित हुए विना उस आहार पानी को अपने शरीर कप कोटे में डाला ॥ २५ ॥ पुंडरीक अनगार को शीवस, +1
पुंडरीक कंडरीक का उर्मीसहवा बैश्ययन
____
:
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org