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________________ नत्र 41 अनुगदक-गालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोल ऋषिजी - - संपावणटुयाए ॥ सणं इह भवैचव बहुणं समणाणं बहुणं समणीणं बहुणं साक्याणं बहुणं साविषाणं अच्चणिजे जाव बीतीवतीरसात ॥४१॥ एवं खलु जंबु ! समणेणं भगवया महाबीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठारसमस्त णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते तिमि ॥ १८ ॥ सारांस गाथा--जहसो चिलाइपुत्तो मुसुमागहो अकजपडिबद्धो धण्णपारद्धो पत्तो महाअडविं वसणसय कलियं ॥ १ ॥ तह जीवो विसय सुहेलुडो काऊण पावकिरियाओ; कम्मबसेणं पावइ भवाडवीए महादुक्खं ॥ २ ॥ धणप्तेट्ठीविव लिये नहीं पोषते हैं परंतु मात्र सिद्धि मुक्ति में जाने के लिये इस को साधनभूत जानकर पोषते हैं वे इस भव में बहुत साधु साध्वी श्रावक व श्राविका में अर्चनीय पूज्यनीय होंगे यावत् अनंत संसार का अंत करेंगे ॥४१॥ अहो जम्नू ! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता सूत्र के अठारहवा अध्ययन का यह अर्थ कहा ॥ १८ ॥ उपसंहार-जैसे चिलात पुत्र चोर सुषुमा में गृद्ध बना हुवा आकार्य में प्रतिबद्ध होने से सार्थवाह से पराभव पाया हुवा मनुष्य रहित अनेक दुःखोंवाली पहान अटवी को प्राप्त हुवा ॥१॥ वैसे ही विषय मुख में गृद्धबने जीवों पाप.क्रियाओं करके कर्म वश से बहुत दुःखोंवाली भवरूप अट्वी प्राप्त करते हैं ॥ २ ॥ धन्ना सार्थवाह समान गुरु, पांच पुत्रों समान शिष्यों, भवरूप अटवी, मुषुमा के मांस प्रकाशक-राजाबहादुर लाळा सुखदेवसहायनी ज्वाला प्रसाद | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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