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गुरुणो, पुत्ताइव माहवोभवो ॥ अडवीसुय मंसमिवा आहारो, रायगिहं इव सिधणेयं ॥ ३ ॥ जह अडविणियर णित्थरण पावणत्थं ॥ तएहिं सुयमंस भुत्तं तहेव साहु
गुरुणा आणाए आहारं ॥ ४ ॥ अट्ठारसमं णायज्झयणं सम्मत्तं ॥ १८ ॥ * * समान आहार, और राजगृह समान मोक्ष ॥ ३ ॥ जैसे अटवी को पार होने के लिये उनोंने सुषुमा पुत्री के मांस का आहार किया वैसे ही भवरूप अटवी को पार करने के लिये गुरु की आज्ञा से साधु निर्दोष माहार करते हैं. यह अठारहवा अध्ययन संपूर्ण हुवा ॥ १८ ॥
षष्टांग ज्ञानाधर्मकथा को प्रथम श्रुतस्कन्ध
सुषमा दारिका का अठारहवा अध्ययन 42
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