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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
ततेणं से धण्णे सत्थवाहे पंचहि पुत्तेहि सहि अर.ण करेति अरणिकरेत्ता, सरगं करेइ २त्ता सरएणं अराणि महेति२ त्ता अग्गिपाडेइ२त्ता अग्गिसंधुक्केति २ ता, दारुयाति पक्खिवति २त्ता अग्गिं पज्जालेति २ चा सुसमाएदारियाए मंसंच पइत्ता सोणियंच आहारेति, तेणं आहारणं अवस्थड समाणा रायगिहं गयरिंपत्ता, मित्तणाइ, अभिसमण्णागया,तस्स विउलस्स धणकणगरयण जाव आभागी जायावि होत्था॥३८॥ ततेणं से धणे सत्यवाहे सुसुमाए. दारियाए बहुतिं लोइयातिं नाव विगयमोए जाए. यावि हात्था ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीर रायगिहे जयरे
जेणेव गुणसिलए चेइए तणेव समोसढे सेणिओ विराया जिग्गया ॥ ३९ ॥ तएणं की साथ अग्नि करने के लिये अरणि को काष्ट लाया, उसे पास्पर घीसे, घीसकर अग्नि प्रज्वलित की, अग्नि होते उम में लकडे डाले, फीर उस में मुषुमा पुत्री का मांस पकाया और उम का व रुधिर का आहार किया, उस में आधार मे राजगृही नगरी को प्राप्त हवे, मित्र ज्ञात जनों को मिले, और विपुल धन. कनक रत्न वगैरह के भोगी बने ॥ ३८ ॥ धन्ना सार्थवाहने सुषुपा पुत्री के बहुत लौकिक कार्य किये। यावत शोक रहित बने ॥ ३९ ॥ उस काल उम समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में पधारे, श्रेणिक राजा दर्शन करने को निकले ॥ ३९ ॥धन्ना सार्थवाद
प्रकाशक-राजाहदुर लाला सुखदेवमहायजीनामासादजी
मुनकर
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