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सत्र
अर्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलखी +
पुत्त अप्पट्टे चिलायती से आगामियाए सव्वतो समता परिधाएमाणे संते तंते • परिततें नो संचाएइ चलायं चोरसेणावइ सहत्थिगिन्हित्तए, सेणं तओ पडिनियत्तइ जेणेव ससुनुमादारिया चिलारणं जीवियाओ क्रोत्रिया तेणेव उबांगच्छइ २ ता सुमं दारियं चिलाएणं जीवियाओ विवरोवियं षासति २त्तापरिसुणियत्तत्र चंपगपायवे ॥ ३३ ॥ तएणं से धण्णे सत्यव! हे पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछडे आसत्ये कृत्रमाणे कंदमाणे विलवमाणे महया २ संदेणं कुहकुहस्एरणे सुचिरकाल बाहमोक्खं करेइ ॥ ३४ ॥ तरणं से धण्णेसत्थवाहे पचहिं पुत्तेहिं अप्पछट्टे चिलायती से आगमीषाए सव्वतो समता परिधावेमाणे तण्हाए छुहाएय पराभूते समाणे तीसे आगामियाए धना सार्थवाह उन के पांचों पुत्रो सहित चारों तरफ दौड़ते हुवे श्रमित बनकर भी चिलात चोर को पकडने को समर्थ हुआ नहीं तब वह वहां से नीकलकर जहां सुसमा कन्या को मारडाली थी वहां आया. वहां सुषुमा दारिका को मृत देखकर जैसे छेदा हुवा चंपक वृक्ष गिरता है वैसे ही वह गिरपडा. ॥ ३३ ॥ धन्ना सार्थवाह पांचो पुत्रो की साथ सावधान होकर आनंद करता हुवा, विलाप करता हुबा वडे २ शब्द से कुछ कुछ करता हुवा उस अरण्य में बहुत काल तक आश्रु डालने लगा. ॥ ३४ ॥ उम अटवि में चिलात चार को चारों तरफ गोषणा के लिये दोडत हुने छ ही क्षुत्रा व तृषा से पीडित हुए और उस
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श्रमकाशक - राजाबहादुरकाला सुखदेव रायजी ज्वालाप्रसाद जी
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