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पष्टांङ्ग ज्ञाताधर्ममया का प्रथम श्रुनस्कन्ध 43+
अडवीए सव्वतो समंता उदगस्स मगाण गवेसणं करेति, संते तंते परितंते णिवणेतीसे आगामियाए अडवीए उदगस्त मगगण गवसणं करेमाणे णी चेवणं उदगं आसादए तएणं उदगंआणासातेमाणे,जेणेव मुममा जीवियातो ववरोविया पडिया तेणेव उवागच्छइ तएणं से धण्णे सत्यवाहे जेटुं पुत्तं सदावेति २ ता एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता!सुसुमाए दारियाए अट्टाए चिलायं तकरं सव्वतो समंतापरिधाडेमाणे तण्हाए छुहारय अभिभया समाणा, इमीमे आगामियाए अडवीए उदगम मग्गण गवसणं करमाणा णो चेवणउदग आसाएमो;ततेणं उदग अणासाएमाणा णा संचाएमो रायगिह णगरं संपावित्तए
मुषुपा दारिका का अठारहवा अध्ययन 4
अटी में पानीक शोध करने लगे,थके हुवे उन लोगों को ग्रामविना की अटपी में किसी स्थान पानी नहीं मीलने से जहां सुपुपा दारिका पृत पडीथो वहां आये, वहां धन्ना मार्थवाहने ज्येष्ट पुत्र को बोलाकर कहा
अहो पुत्र ! सुषुमा पुत्री के लिये चिलात चोर की शोध करने में चारों तरफ दौडते हुवे अपन क्षधः । व तृषा से पराभव पाये हैं. इस अटवी में अपनने पानी की गवेषणा की परंतु अपन को पानी मीला नहीं पानी विना अपन राज हुच सकेंगे नहीं. इस से अहो पुत्र ! तुम मुझे जीवित से पृथक् करो अर्थात् मुझे मार डालो. और मेरा मांस व रूधिर का तुम आहार करना. इस आहार के आधार से तुम पीछे की।
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