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सूत्र
अर्थ
अनुवाकलवारी मुनि श्री क
उवागच्छ ॥ २८ ॥ ततेनं से चिल्लाए तं चोर सेजाताह णयरगुत्तिएहिं हयमहिय पवर भक्तीए जान भीते तत्थे सुसमंदारियं गहाय एगं महं आगामियं दीहम अडत्रिं अणुरविट्टे || तएणं से धष्णं सत्थवाहे सुसुमं दारियं चिलाएणं अडीही सुसुमं अवहौरमाणि पासित्ता पंचहिं पुत्तेहिं सद्धिं अप्पछट्टे सन्नडबड चिलयस पदमग्गविहिं अगच्छमाणे अभिगज्जते हक्कारेमाणे पोक्कारेमाणे अभितज्जेनाणे अभितामाणे पिटुआ अणुगच्छति ॥ २९ ॥ ततेणं से चिलाए तं घण्णसत्थवाहं पंचपुते अप्पछटुं सन्नद्ध समुणुगच्छमाणं पासति पासित्ता अत्थाम ४ जाहे जो संचाएति सुसुमदारियं निव्वाहितए ताइं संते तंते परितंते न.लुप्पलं उस धन को लेकर राजगृह नगर में आये || २ || नगर रक्षकों से चोर सेना हणाइ हुई यावत् दशों दिशी में भागती हुई देखकर चिलात चोर भयभीत हुना, त्राम पाया यावत् सुषुमा कन्या को उठाकर एक बडा ग्राम विना की अटवी में उसने प्रवेश किया. घना सार्थवाहने सुसुवा कन्या की साथ चिलात की अटवी प्रवेश करता हुआ देखा. वह शीघ्रमेव अपने पांचों पुत्रों की साथ सन्नद्ध बद्ध बना हुवा चिलात चार के पांव के अनुसार उनकी पछि जाता हुवा हुंकार करता हुवा, उसे पोकारता हुवा, तर्जना करता हुवा, ताडना करता हुत्रा, व त्रास उत्पन्न करता हुआ पीछे दौडते जाने लगा ॥ २२ ॥ धन्ना सार्थवाह व उन के पांचों पुत्र को पीछे आते हुने देखकर जब वह मुषमा कन्या को उठाकर ले जाने में समर्थ हु'
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● प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुचदबसहायजी ज्वालाप्रसादजी ●
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