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सुसमा दारिया ॥ २६ ॥ ततेणं ते णयरगुत्तिया धण्णस्स सत्थवाहत्स एयमटुं पडिसुणति २ सन्नह बह! जाव गहिया उपहरणा महया २ उक्किट्ठ जाव समुद्दरव भूयंपिव करेमाणा रायगिहातो णिग्गच्छति २ त्ता जेणेव चिलाए चारे तेणेव उवागच्छइरत्ता चिलाए चोर सेणावतिणा सहिं संपलग्गायावि होत्था ॥ ततेणं ते नगरगुत्तिया चिलायं चोरं सेणावति हय महिय जाव पडिसेहिति ॥ २७ ॥ ततेणं ते पंचचोरसया नयरगत्तिएहिं हय माहेय जाव' पडिसेहियसमाणा तं विपुलं धण कणग विच्छडेमाणाय विप्पकिरमाणाय सव्वतो समता विप्पलाइत्था ॥ ततेणं
ते णगरगुत्तियां तं विपुलं धणकणगं गिण्हति २ चा जेणेव रायगिहे गयरे तेणेब. ॥ २६ ॥ धन्ना सार्थवाह की पास से ऐसा सुनकर कोतवाल बख्तर पहिनकर यावत् शत्रों लेकर सिंहनाद जैसे बड २ शब्द से गर्जना करते हुवे राजगृह नगर में से निकलकर चिलात चोर की मरफ गये। और चिलात चोर सेनापति की साथ यद्ध करने लगे. नगर रक्षकोंने चिलात चोर को हराकर यावत्
दशों दिशी में भगाया ॥ २७ ॥ पांच सो चोरों को नगर रक्षकोंने हराकर दशों दिशी में भमाये जिस से | Vउन चोरोने विपुल धन,कनक इत्यादि को वहां ही चारों दिशीमें फेंक दिया. और वे भग गये, नगर रक्षकों
48 पटाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्य
सुपुमा दारिका का अठारहमा अध्ययन 42
अर्थ
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