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4.8 अनादर-चालतमचारीमनी श्री अमोलक ऋपिनी
जेणेव सएगिहे तेणे२ उवागच्छइ २ त्ता सुबहु धण कणग सुसुमंच दारियं अवहरियं जाणित्ता, महत्थं ३ जाव पाहुडं गहाय जेणेव गगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ २ ता तं महत्थं पाहुडं उवणेति २ त्ता एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! चिलाए चोरसेणापई, सीहगुहातो चोरपल्लीओ इहं हन्वमागम्मं पंचहिं चोर सएहिं सद्धिं ममगिहं घाएत्ता सुबहुणं धण कणग सुसुमंच दारियं गहाय जाव पडिगए तं इच्छामोणं - देवाणुप्पिया ! सुसमाए दारियाए
कूवं गमित्तए, तुभेणं .देवाणुप्पिया ! से विपुल धण कणगं मम बहुत धन, कनक व मुषा कन्या का हरण कराया हुवा जानकर महा मूल्यवाला यावत् भेटणा लेकर वहां के नगर रक्षक (कोतवाल ) की पास आया. उन को महा मूल्यवाला भेटणा रखकर ऐमा बोला महो देवानप्रिय ! सिंहगुफा नायक'चोरपल्ली में से चिलात नामक चोर सेनापति पांच मो चोरों की 'मा यहां आकर मेरे घर में मे बहन धन कनक यावत् लूटकर व मेरी सुषुमा नामक कन्या का हरण करने पीछा चला गया है. अहो देवानुप्रिय ! मैं सुषमा कन्या की साहाय के लिये जाना चाहता हूं. और आप भी साहाय के लिय चलो. उस में मे जो धन पीछा आवेगा सो आप रखना और कन्या हम लेवेंगे।
भकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी •
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