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मत्र
अर्थ
48 अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि
|| अष्टादश अध्ययनम् ॥
जतिणं भंते ! समणेणं. भगवया महावीरेणं जाव संपतेणं सत्तरमस्त नायज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, अट्ठारसरसणं भंते ! णायज्झयणस्स समणेणं. भगवया महावीरणं जाव संपत्तेर्ण के अट्ठे पन्नन्ते ? ॥ १ ॥ एवं खलु जंबू ! तेणं कालणं तेण समएणं रायगिणाम नगर होत्था वण्णओ ॥ २ ॥ तत्थणं घण्णेनामं संस्थवाहे परिवसइ. मद्दा भारिया ॥ ३ ॥ तस्मणं धष्णस्स सत्यवाहस्स पुत्ता भद्दाए अत्तया पंच सत्थवाह दारंगा होत्था तंजहा-धणे, धणपाले, धणदेवे, धणगोवे, धणरखिए ॥ ४ ॥ सस्स्रणं धण सत्यवाहस्सधूया भद्दाए अत्तया पंचन्हं पुत्ताणं अणुमग्गं जातिया सुमसुमा
में
अहो भगवन् ! जब श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी ने ज्ञाता सूत्र के सत्तरहवा अध्ययन का उक्त अर्थ कहा तब अठारहवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा ? ॥ १ ॥ अहो जम्बू ! उस काल उस समय | राजगृह नगर था वह वर्णन योग्य था ॥ २ ॥ उस में चन्ना मार्यवाह रहता था. वह ऋद्धि वंत यावत् अपराभूत था. उस को भद्रा भार्या थी ॥ ३ ॥ उस धनासार्थ वाह के पुत्र भद्रा भार्या के आत्मज (पांच सार्थवाह के पुत्र थे जिन के नाम १, धन २, धनपाल ३, धनदेव ४, घनगोप, व ५ घनरक्षित ॥ ४ ॥ धन्नास वाह की पुत्री भद्रा भार्या को आत्मना व पांचों पुत्रों से पीछे जन्मी हुई
सुषुमा
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* प्रकाशक- राजा बहादुर लाला सुखदेवसायनीज्वालाममादजी*.
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