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षष्टांडवाताधर्षकथाका प्रथम श्रुतस्कन्ध 419
पयत्नेयादि होत्था ॥ ततेणं ते आसा ते उक्ट्रेिस सद्द फरिसरसरूवं गंधेसु . . आसेवमाणा तेहिं बहुहिं कूडेहिय पासेहिय गलएसुप पाएसुय बझंति ॥ १९ ॥ ततेणं ते कोडुंबिय पुरिसा ते आसा गिण्हति २ ता एगट्ठियाहिं पोयवाहणे संचारेति २ त्ता तणस्सय कटुस्सय जाब भरेति ॥ २० ॥ ततेणं ते संजताणावा वाणियगा दक्विणाणु कूलेण वाएणं जेणव गंभीर पोयपटणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता पोयवाहणं लबतिरत्ता आसे उत्तारोत, ते आसाउत्तारेत्ता, जेणेव हात्थि सीसे णयर जेणेव कणगकेउराया तेणेव उवागच्छइ २ करयल जाव वडावेति २त्ता ते
आसा उवणेइ ॥ २१॥ ततेणं से कणग केऊराया तेसिं संजत्ता वाणियगाणं स्पर्श, रूप व रस का आस्वादन करनेवाले अश्वों को कूह पाश में गले व पांच से बांध दिये ॥ १९ ॥ कौटुबिक पुरुषोंने अश्वों लिये और छोटी नावा से बडी जहाज में लगये. उस में तृण काष्ट यावत् सब भर दिया ॥ २० ॥ तत्पश्चात् वे सांयात्रिक वणिकों दक्षिणानुकूल वायु से गंभीर पोत पट्टण की पास गये. वहां जहाज का लंगर किया. उस में से घोडे उतारे और जहां हस्तिशीर्ष नगर व कनकके राजा था वहां जाकर उन को हाथ जोडकर यावत् जय विजय शब्द से बधाकर उन घोडे को देदिया। २१॥कनककेतु रामाने उन सांयात्रिकों का कर माफ कर दिया. और उन को सरकार सन्मान देकर
4. आकोण जाति के घोडे का सतरहवा अध्ययन
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