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अर्थ
44 अनुवाक चालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिो
उम्मुकं वियरति सकारेति सम्माणेति पडिविसज्जेति ॥ २२ ॥ ततेणं से कणग के ऊराया कोटुंबिय पुरिसे सदावेति २ ता सकारेति सम्माणेति पडिविसज्जेति ॥ २३ ॥ ततेणं से कणगकेऊराया आसमह पुरिसे सद्दाति २त्ता एवं वयासी तुब्भेणं देवाणुपिया ! मम आसा विणएह ! ततेण ते आसमद्दगा पुरिसा तहत्ति पडिमुणेति २त्ता ते आसेबहहिं मुहबंधेहिय कण्णबंधेहिय णासाबंधहिय, बालबंधहिय, खरबंधेहिय, कडगबंधेय, खलिणबधेय, पडियाणेहिय, अंकणाहिय, बलप्पहारेहिय, चित्तप्पहारेहिय, लया पहारेहिय, कसप्पहारेहिय छिवपहारेहिय, विजयंति ते आसे कणगकेविसर्जित किये ॥ २२ ॥ कनककेतु राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और उन का सत्कार सन्मान करके उन को विसर्जित किये ॥ २३ ॥ तत्पश्चात् कनककेतु राजाने अश्वमर्दक ( अश्व को पढनेवाले ) को बोला ये और कहा कि मेरे अश्वों को सब प्रकार की चाल चलाना सीखलावो. अश्वपालोंने तहत करके उन का वचन मान्य किया. उन अश्वों को बहुत प्रकार से दोरी आदि से मुख बंबा, कर्ण बंधे, नासिका बंध दी, गर्दन व पुंछ के बाल बांधे, बंधे के खर बंध, कमर बंधी, चौकडा बन्धा, पट्टे आदि ( भीडे, अंकित (खमी ) किये, सबल महार से मारे, चाबूक के प्रहार से,
तों के प्रहार से, दोरियों के
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● प्रकाशक राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामादजी
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