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अमढ दिसाभाए जाएयावि होत्था ॥ तसेणं से णिजामए ते बहो कुच्छीधाराय ४ -- एवं वयासी-एवं खलु अह देवाणुप्पिया ! लद्धमतीते जाव अमूढदिसाभाए अम्हेणं देवाणुप्पिया कालियदीवं तेणं संबूढा, एमणं कालिय. दीवे आलोकिजइ ॥ ततेणं ते कुच्छीधाराय ४ तस्स गिजामगस्स अतिए एयमटुं सोचा. हट्ट तुट्ठ पथक्खिणाणु कुलेश वारण जणेव कालियदीवे तेणेव उवागच्छइ२त्ता पोयवहणं लंबति २त्ता एगट्रियाहिं कालियदी उत्तरति॥८॥तत्थणं बहवे हिरण्णागरेय,सुवण्णागारेय रयणागरेय, वइरागरय; बहवे तत्य आसे पासंति, किते हरिरेणु सोणिसुत्तग . आइपणवेढा ॥ ९॥
ततेणं ते आसा ते वाणियाए पासंति २त्ता तसिं गंध अग्घायंति २त्ता भीया तत्था उविगा धारण करनेवाले यावत् सांयात्रिक लोगों को कहने लगा कि अब मुझे दिशा का ज्ञान हुवा है. अपन सब कालिक द्वीप की पास आये हैं और यह कालिक द्वीप दीख रहा है. निर्यापक के ऐसे वचनों सुनकर वे चादुए धारण करनेवाले यावत् सांयात्रिक लोग हृष्ट तुष्ट हुए. अनुकूल वायुमे कालिक द्वीपकी पास आये.
वहां जहाजका लंगर डाला और छोटी नावाओं में आरह हो कर द्वीप में मये ॥८॥ वहां बहुन चांदा,सुवर्ण, परत व हीरे की खानों देखी. वैसेही कम्मर में बांधने का चमडे के दोरे जैसे नीला वर्णवाले आकीर्ण ... जाति के अश्व भी देखे ॥ ९ ॥ उन सांयात्रिक वणिकों को देखकर वे अश्वों भयभीत हुवे, उद्विग्न हुवे
षष्टांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 44
आकीण जाति के घडे का मनरहने। अध्ययन
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