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________________ उविगामणा, सतो. अणेगाति' जोयणाति भमंति। तेणं तत्थ पउरगोयरा पउता... । पाणिय निब्भया निरुविग्गा सहमहेणं विहरंति ॥ १० ॥ तएणं ते संजु । त्तागा णावावा णियगा अण्णमण्णं एवं बयासी-किण्णं अम्हे देव णुप्पिया!आसेहि इमेणं बहवेहिं हिरण्णागरा, सुवण्णांगारा, रयणगाराय, वइरागाराय, तं संयं खलु अम्हं हिरण्णस्सय सुवण्णस्सय रयणस्सय, वइरस्सय पोयवहणं भरित्तए तिकटु, अण्णमन्नरस एयमट्ठ पडिमुणेति २ हिरण्णस्सय सुवण्णस्सय रयणस्सय वइरस्सय, तणस्सय अण्णस्सय, पाणित्सय, पोयवहणं भरेंति २ . त्ता . दक्खिणाणुकुलेणवएणं अणव मंभीरए पायपट्टणे तेणव उवागच्छतिरत्ता पोयवहणं लबाबेतिरत्ता सगडीसागडं सज्जेति २ तं हिरण्णंच जाव वइरंच एगट्टियाहि पोयवाहणातो संचारेति २ त्ता और वहां से बहुत योजन दूर भग गये. वे अश्वों वहां प्रचुर तृण के क्षेत्रों व पानी मिलने से निर्भय बनकर वहां की विचरने लगे ॥ १ ॥ चे सांयात्रिक वणिको परस्पर कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! अपन को इन अश्वों से बहुत चांदी, सुवर्ण रत्न व हीरे की खदानों प्राप्त हुई है, इस से यहां से चांदी, सुवर्ण, रत्न व हीरे से अपनी जहाजों भरना चाहिये. यों, कहकर सबने यह बात मान्यः की. सबन 11/चांदी, सुवर्ण रत्नों, हीरे वृण, काष्ट मिष्ट पानी से अपनी २ जहाजों भर में. वहां से दक्षिणानुकूल है। 4. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्रा अपोलकषिजी anwarwwwh पशक-मजामहालाला हरदमहायजी ज्वालाप्रसादजी अथ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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