________________
जगाय संजुत्ताणावावाणियगाय जेणेव से णिजामए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता एवं क्यासी-किन्न तुम देवाणुप्पिया ! ओहयमण संकप्पा जाव झियातति ? ॥ ततेणं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधाराय ४ एवं वयामी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! णटुमतित जाव अवहित्तए तिकटु, ततो ओहयमण संकप्पे जाव झियाति ॥ ६ ॥ ततेणं ते कण्णधाराय ४ तस्स णिज्जामयस्स अंतिए एयम, सोच्चाणिसम्म भीया, ४ ण्हाया कयवलिकम्मा करयल बहणं इंदाणय खदाणय जहा मलिणाए जाव
उवायमाणा चिट्ठांते २ ॥ ७ ॥ ततेणं ण णिज्जामए ततो मुहुर्ततरस्स लडमईए ३ अर्थ तुप संकल्प विकल्प क्यों करत हो यावत् प्राति ध्यान क्यों ध्याते हो ? निर्यामकने उत्तर दिया कि मेरी
मात, श्रुनि व संज्ञा अबी नष्ट होगइ है, और यह नावा किस दिशा में कौन से देश में माती है इस का भी मुझे ज्ञान नहीं रहा है, इस से. संकल्प विकल्प करता हुवा यावत् आर्त ध्यान करता हूं ॥ ६॥ इस से वे चाटुए धारन करनेवाले, कूवास्तंभ धारण करनेवाले, ऊंच नीच काम करनेवाले व सांयात्रिक बणि निर्यावक के ऐसे वचनों मुनकर भयभीत हवे. उनोंने स्नानकिया, बलिकर्म किया, और हाथ जोडकर बहुत
इन्द्र, सध वगैरहकी जैसे मल्लिनाथ के अध्ययन में मांगात्रिकोंने पूजाकी थी वैसेही पूजा करतेहुवे रहने लग 16 ॥ ७॥ गुडून पीछे मति, स्मृति व संज्ञा होने से उस निर्यामक को दिशा का ज्ञान हुवा. तब उन चाटुए।
अनादकाल ब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी -
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजीनामाप्रसादज..
के
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International