SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 698
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - सूत्र - ऋषिजी namwww ३१० 49 अनुरादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री ॥ सप्तदश अध्ययनम् ॥ जतिणं भंते ! समणेणं भगवया माहबीरणं जाव संपत्तेणं सोलसमस नायज्झ... यणस्स अयमढे पन्नत्ते, सत्तरसमरसणं भंते ! जायज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपेत्तेणं के अट्रे पन्नते ? । १॥ एवं खलु जंबु ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिसीसे नाम नयरे होत्था वणओ, तत्थणं कणगकेऊणाम राया होत्था वणओ ॥ २॥ तत्थणं हत्थिसीसं जयरे बहवे संजत्ताणावा वाणियगा परिवमंति ॥ अड़ा जाव अपरिभ्यायावि होत्था ॥ ३ ॥ ततेणं तेसिं संजुत्ताणावा वाणियगाण अन्नयाकयाइ एगयआ साहियाणं जहा अरहणए जाव लवणसमुद्दे अग्रेमाता जायणसपाइं उगाढायावि होत्था ॥ श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने हाता मूत्र के सोलहवा अध्ययन का यह अर्थ कहा तो सत्तरहवा अध्ययन का क्या अर्थ कहा है. ? ॥ १॥ अहो जम्बू ! उपकाल उस समय में हस्ति शीर्ष नामक नगर F था उनमकनक केतु राजा राज्य करता था. ॥२॥ उस हस्तिशीर्ष नगर में बहुत सांयात्रिक (जहाजा से व्यापार करने वाले) व्यापारी रहते थे. वे ऋद्धिवंत यावत् अपराभूत थे. ॥ ३ ॥ जैसे अरहनक श्रबकने सब मिलकर विदेश गमन का विचार किया था वैसे ही इनोंने विदेश ममन का विचार किया। काशक सजावहादुर लालासुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसाद Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy