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________________ 262 म ६८९ 4- पटांग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रतः दम सागरोवमाइठिई पणत्ता ॥ सेणं भंते ! दुवे देवे ताओ जाव महाविदेहवासे जाव अंतंकाहिति ॥ २१०॥ एवं खल जंब ! समणणं भगवया महावीरेणं जाच संत्तणं सोलमस्सणं णायज्झयणरस अयम? पन्नत्ते ॥ तिमि ॥ १६ ॥ गाथा-मुबहुपि तवाकले सो णियाणदोसण दूसिआ संतो, न सिवाय दोवतीए अह किल सुउमालियाजम्मे ॥ १ ॥ अहवा · अमणुण्ण ‘मभत्तीए, पत्ते दाणं भवे अगत्थाय ॥ जह कडुय तुबदाणं, णागसिरि भवमि दोवइएत्ति ॥ २॥ सोलसम जायज्झयणं सम्मत्तं ॥ १६॥ * देवों की दश स'गरोपम की स्थिति बरूपी है. वैसे ही द्रौपदी देव की भी दश मागरोपम की स्थिति में कही. वह द्रौपद दव यावत् महा विदर क्षेत्रमें म झंगे.बुझेंग यावत् मबदुःखका अंत करेंगे ॥२१॥हो जम्बू ! श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने ज्ञाता सूत्र के सोलहवा अध्ययनका यह अर्थ कहा ॥१६॥ पसंहारनियाणा के दोष मे दूषित बना हुवा कठिन तप भी मुक्ति का साधक नहीं होता है जैसे द्रौपदी मुकमालिका के भव में नियाणा हिया॥१॥ भक्ति रहित अमनोज्ञ वस्तु का दान सुपात्र को देना ही अनर्थ का हेतु है जैसे नागश्री के भव में कडुये तुम्का आहार धर्म रूचि अनगार को द्रौपदीने दिया. ॥२॥ यह सोलहवा अध्यापन संपूर्ण हुना ॥ १६ ॥ द्रोपदी का सोलहवा अध्ययन For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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