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________________ + षष्टांग शालधर्मकथाका प्रथम श्रुतस्कंध +sir रजं पसाहेमाणे विहरति.॥ २०२ ॥ततेणं ते पंचपंडवा दोवतीदेवी अन्नयाकयाइ पंडुसेणं रायं आपुच्छति ततेणं से पंडुसेणेराया कोडुबिय पुरिसे सहावेति २ ता एवं बयाली-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! णिक्खमणाभिसेयं जाव उवट्ठवेह, पुरिससहस्स : वाहिणीओ,सियाओ उवट्ठवेह जाव पचोरुहति रचा जेणेव थेरा तेणेव उवागच्छइ.२ ता. आलित्तेणं जाव समणा जाया चोहसपुवाई अहिजति २ चा बहाण वासाणि छट्ठट्ठम दसम दुवालसेहिं मासद्धमासक्खमणेहि अप्पाणं मावेमाणे विहरति ॥ तएणं सा दोवई देवी सियाओ पचोरुहइ २ ता जाव पब्वइओ मुनयाए अजाए सिस्सपांडुसेन कुमार का राज्याभिषेक किया यावत् राज्य को पालते हुवे विचरने लगा ॥२.२ ॥ एकदा पांचों पांडवों व द्रौपदीने पांडुसेन राजा की आज्ञा मांगी. सब पांडुसेन राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को बोलाये और कहा कि अरे देवानुप्रिय ! दीक्षा उत्सव यावत् वैयार करो. सहस्र पुरुष बाहिनी शीविका तैयार है। करो. यावत् उस में से उतर कर स्थविरों की पास गये और कहा कि यह लोक आलिप्त है यावत् श्रमण हुए. चौदह पूर्व का अध्ययन कर बहुस वर्ष पर्यंत छठ-अठम, दशम व द्वादश भक्त, अर्घ मास, मास समणादि तप से आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे. और द्रौपदी देवी भी शीविका में से नीच द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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