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सूत्र
अर्थ
4+ अनुवाहक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजो
कुमारं रजेाववामों ततो पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंड भविता जाव पव्बयामो? ॥ अहासु देवाणुप्रिया ! ॥ २०० ॥ ततेनं पंच पंडवा जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ २ चा दोवतिदेवि सहावेति २ चा एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हेहिं थेराणं अंतिए धम्मं सिंते जाव पव्त्रयामो, तुमणं देवाणुपिए 1 किं करोसि ? तसेणं सा दोवती ते पंच पंडवे एवं वयासी-जतिणं तुब्भे देवाणुप्पिया! संसार भउव्विग्गा जाव पन्चयह, के अपने आलंबेचा जाव भविस्सइ अहं पियणं संसार भड़विग्गा देवाणुनिएहिं साई पव्यतिस्सामि ॥ २०१ ॥ ततेनं ते पंच पंडवा पंडुसेणरस कुमारस्स अमिसेओ जाव
पुछकर पांडुसेन कुमार को राज्याभिषेक करवा कर आपकी पास दीक्षा लेवेंगे. स्थावर ने उत्तर दिया { जैसे तुम को सुख होवे वैसा करो. ॥ २०० ॥ पांचों पांडवों अपने २ गृहगये और द्रौपदी को बोलाकर कहा अहो देवाणुप्रिये ! हम स्थविर की पास से धर्म श्रवण कर यावत् दीक्षा अंगीकार करते हैं अहो | देवाणुत्रियों तुम क्या करोगी. तब द्रौपदी पांचों पांडवो को बोली अहो देवानुप्रिय ! अब तुम संसार भय { से द्विन बनकर यावत् दीक्षा अंगीकार करते हो तो मुझे अन्य क्या आधार, अवलम्बन यावत् होगा. मैं भी संसार भय से उद्विन बनी हुई यावत् दीक्षा ग्रहण करूंगी. ॥ २०१ । अब पांचों पांडवोंने
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* काशक राजाबहादुर मला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ●
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