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सत्र
६६६
अनुगदक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक प्र.पिनी +
उत्तम पुरिसाणं इट्ठी जाव परक्कमे तं खामेमिणं देवाणुप्पिया ! जाव णाई भुजों २ एवं करणयाए त्तिकटु, पंजलिउडे पायवडिए, कण्हवासुदेवस्स दोवर्तिदेविं साहत्थि : उवणेति ॥ १७६ ॥ ततेणं से कण्हवामुदवे पउमणाहं एवं वयासी-हंभो पउम- . णाभा ! अप्पत्थिय पत्थिया ४ किन्नं तुमंण जाणासि ममभगिणी दोवतीदेवी इहं हव्वमाणे, तं एव मागिए गस्थिते ममाहितो इयाणिं भयंनत्थि तिकटु पउमणाभं पडिविसजेतिरत्ता दोवति देविं गिण्हति,दोवति देवि गिहिती रहं दूरुहेति २त्ता जेणेव पंचपंडवा तेणेच उवागच्छति२ त्ता पंचण्हं पंडवाणं दोवतिं देवीं साहत्थि उवणेति
॥ १७७ ॥ ततेणं से कण्हे वासुदेवे पंचहि पंडवेहि साई अप्पछटे छहिं रहेहिं लवण पुनः २ क्षमा चाहता हूं. पुनः मैं ऐसा नहीं करूंगा. यों कह कर हाथ जोडकर उनके पांव में पद्मनाम राजा गिर पडा. और कृष्ण वासुदेव को द्रौपदी देव। हाथों हाथ दी. ॥१७६ ॥ कृष्ण वासुदेव पद्मनाम से बोलने लगे कि अहो अप्रार्थित जो मृत्यु उस की प्रार्थना करने वाला पद्मनाम ! तुझे क्या यह नहीं मालूम था कि मेरी भगिनी द्रौपदी देवीको यहां शीघ्र ले आया. अब यह सब गया. अब मेरी तरफ से तुझे इकिसी प्रकार का भय नहीं है. यों कह कर पद्मनाभ को विजित किया. वहां से द्रौपदी को अपने रथ में बैठाकर पांच पांडवों की पास लाये और उनको अपने हाथ से दी. ॥ १७७ ॥ अब कृष्ण वासुदेव पांच
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजाजालामसामील
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