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समुई मज्झं मझेणं जेणेव जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ १७८ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं धायति संडेदीवे पुरच्छिमद्धे भारहेवासे चंपाणामं णयरी होत्था, पुण्णभद्देचेइए ॥ १७९ ॥ तत्थणं चंपाए नयरीए कविलेणामं वासुदेवे राया होत्था महया हिमवंत . ॥ १८० ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं मुणिसुव्वय अरहा चंपाएणयरीए पुण्णभद्दे चेइए समोसढे कपिल वासुदेवे धम्मसुणेति ॥ १८१ ॥ तएणं से कविले वासुदेवे मुणिसुव्वयस्स
अरहतो धम्मं सुणेमाणे कण्हस्स वासुदेवरस संखसदं सुणेति ॥ १८२ ॥ ततेणं पांडवों व छ रथ लेकर लवण समुद्र उल्लंघ कर जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में जा रहे थे. ॥ १७८ ॥ उम काल उस समय में पुर्वाध धातकी खण्ड के भरत क्षेत्र में चंपा नामकी नगरी थी. उस में पूर्णभद्र चैत्य था. ॥ १७१ ॥ उस चंपा नगरी में कपिल नामक वासुदेध महाहिमवंत समान राजा था. ॥ १८ ॥
जस काल उस समय में मुनि सुब्रत अरिहंत चंपा नगरी के पुर्णभद्र उद्यान में पधारे. कपिल बामदेव धर्म 135 सुनते थे. ॥ १८१ ॥ मुनिसुव्रत अरिहंत की पास से धर्म श्रवण करते हुवे कपिलं वासुदेवने कृष्ण* 1 वासुदेव के शंख का शब्द सुना. ॥ २८२॥ शंख का शब्द सुनकर कपिल वासुदेव को ऐसा अभ्यासाय।
पटांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध
as द्रौपदी का सालहवा अध्ययन
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