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Am+ षष्टांङ्ग ज्ञ साधर्मकथा का प्रथम श्रतस्कंध
सोल्लिय सिंधुवार कुंददु संन्निगास निययस्स बलस्स हरिस जणणं रिउसेणवि.' णासकर पचजण्णसंखं पर मुसइ २ ता मुहवायपुरियं करेइ ॥ तएणं तस्स पउमणाभरस तेणं : संखसदेणं बलतिभाए हते जाव पडिसेहिए ॥ ततणं से कण्हे वासुदेवे धणु परामुसति २ वेढो धणुपूरेति २त्ता धणुसहं करेइ ।ततेणं तस्स पउमणाभस्स दोच्च बलतिभाए तेणं ध[सदेणं हय महिय जाव पडि सेहेति।ततेणं से पउमणाभे . राया तिभागबलावसेसे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसकार परक्कमे अधरणिज्जमि
त्तिकहु, सिग्घतुरियं जेणेव अमरकंका रायहाणी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता अमरकंक व चंद्र के वर्ण समान श्वेत, अपने सैन्यदल. में हर्ष करनेवाला व शत्रुओं का विनाश करनेवाला पंचन्य शंख का अपने मुख से शब्द किया. इस तरह शंख का शब्द होते ही पद्मनाभ राजा के सैन्य का
तीमरा भाग हराया यावत् दशोदिशी में भगने लगा. तत्पश्च त् कृष्ण वासुदेवने अपना सारंग * धनुष्य हाथ में उठाया, और उस की प्रत्यं वा खीचकर धनुष्य का टंकारव किया. इस से पद्मनाभ राजा के .. *दूसरा भाग का तीसरा भागहराया व यावत् दशदिशो में भागने लगा. अब कटक का तीसरा भाग अवशेष
रहने से पमन भराजा बल बीर्य यावत् पुरुषार्थ रहित होने से शीघ्रपत्र अपनी अमरकंका राज्यधामी में.
द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन
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