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4- अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
ण्णाया समाणा सन्नह बहा रहे दुरूढा जेणेव पउमणाभे तेणेव उवागच्छद २. त्ता एवं क्यासी--अम्हेवा पउमनाभेवा, आव पडिसेहेति ॥ १७१ ॥ ततेणं से कण्हवासुदेवे ते पंचपंडवे एवं वयासी-जतिणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! एवं वयंनाअम्हेणो पउणाभेराय त्तिक? पउमणाभणं साई संपलग्गं वा तोणं तुम्भेणं उममाहे हय महिय पवर जाव पडिसहिया, तं पेच्छहणं तुम्मे देवाणुप्पिया । अहं नो. पउमणामेराय त्तिकटु पउमणाभणं रन्ना सद्धिं जुज्झामि ॥ रहं दुरुहेति रहं दुरुहि त्ता
जेणेव एउमणा भेराया तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, सेयं गोस्वीरहारधवल तणु करने लगे. वहां से उनोंने हमारे चिन्हों ध्वजा इत्यादि सब नीचे डाल दिये यावत् उस मे भगते हुने हम तुम्हारी पास आये हैं ॥ १७१ ॥ तब कृष्ण वासुदेवने पांचों पांडवों को कहा कि अहो देवानुप्रिय ! यदि तुम वैसा कहते किहम विजय प्राप्त करेंग परंतु पमनाभ राजा विजय नहैं। प्राप्त करेंगा तो तुम पद्मनाभ - राजा के ध्वजा वगैरह राज्य चिन्ह को नष्ट करते यावत् युद्ध क्षेत्र में से उसे भगा देते. अहो देवानुभिय ! अब तुम देखो कि में विजय प्राप्त करूंगा परंत पद्मनाभ राजा। साथ युद्ध करने को मैं जाता हूं. यों कहकर कृष्ण वासुदेव रथ पर आरूढ हुवे. और पद्मनाभ राजा की पास गये. वहां कृष्ण व मुदेवने श्वेत गेक्षीर व मोती के हार समान धाल, मल्लिक, मालती, सिंदुवार,.
प्रकाशक सजावहादुर लालासुखदेवस हायजी ज्याला प्रसादजी
अर्थ
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