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कर
का प्रथम श्रुतस्कन्ध
41 कराया तिकट्ट, प्रलमणाभेणं स्मद्धिं संप्रलग्गेयावि होत्या.॥ ततेणं से पउमणाभे राया .
ले पंचपंडो खिप्पामेव. हय महिय पवर विकड़िय चिंधद्धय पडाग जाव दिसोदिर्सि
'पडिसेहेति ॥ १७ ॥ तसेणं ते. पंचपंडवा पउमणाभणं रण्णा हय महिय पवर ६६१ .. क्विडिय जाव. पंडिसहिया समाणा अस्थामा जाव अधारणिजमि त्तिकटु जेणेव : है. कण्हवासुदेवे तेणेव उबागच्छइ... ततेणं से कण्हवासुदेवे तेपेचपंडवे एवं बयासी
कहण तुम्भे देवाणुपिया ! पउमणाभेग रण्णा. सद्धि संपलग्गा ॥ ततेणं ते.
पंच पंडवा कण्हं वासुदेवं एवं वयांसी-एवं खलु देवाणुप्पिया! अम्हे तुब्भेहि अब्भणु- .. 15यों कर कर पद्मनाभ राजा की साथ युद्ध करने लगे. पद्मनाभ राजाने पांडवों को शीघ्र जीत लिये, उन 3 |
के मान का मर्दन किया. उनके मुकुट व धजा पताका के चिन्हों को नीचे डालदिये यावत् दशदिशि में भगा दिये. ॥ १७० ।। पमनाभ राजा से हणाये हुवे अजा पताका वगैरह चिन्हों नाश कराये हुवे यावत् । दर्शदिशि में भगते हुने पांचों पांडवों बल्ले वीर्य रहित बनकर कृष्ण बासुदेव की पास आये. तब कृष्ण
वासुदेवने पुछा कि अहो देवानुपिय ! पद्मनाम राजा की साथ तुम 'कैपे युद्ध करने लगे ? तब. पांचों अपांडाने उत्तर दिया कि अहो देवानुमिया! आप की अनुझा से शस्त्र बांध कर च रथारूढ होकर पद्मनाभ 17राजाकी पाम हम गये. वहां उनको हमने ऐमा कहाकि हम नहीं अथवा पद्मनाभराजा नहीं यों कहकर युद्ध ।
द्रौपदी को सोलहवा अध्ययन
- षष्टांत
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