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का अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
अमिसेयं हस्थिरयणं दुरुहात २ सा हयगयचउरंगिणिए जेणेव कण्ह वासुदेवे तेणेव पहारेत्य गमणाते॥१६८॥ततेणं से कण्हेवासुदेवे पउमणाभरायं एजमाणं पासति,एजमाणं पासित्ता, तं पंच पंडवे एवं वयासी-हंभो दारगा किन्न तन्भं उमणभेणं सहिं जझह उदाहु . पिच्छेह ? ततेणं. ते. पचपंडवा कण्हं वासुदेवं एवं क्यासी-अम्हेणं सामी ! ... झुज्झामो तुभ पिच्छह ॥१६९॥ततेणं पंचांडवा सण्णाहबद्ध जाव पहरणरहे दुरुहति,
दुरुहेत्ता जेणेव पउमणाहे राया तेणेव उवागच्छइरला एवं वयासी-अम्हे वा पउमणाहे. अहो देवानुप्रिय : अभिषेक स्तिगत घ्रमेव तैयार करो. , तत्पश्चात् कलाचार्यों की पति से बनाये हुवे शस्त्रों यावत् रखा. तत्पश्चात् पद्मनाभ राजा वरूनर वगैरह पहिन कर अभिषेक इस्तिर पर आरूढ होकर हाथी घोडे वगैरह चतुरंगिनी मेना सहित कृष्ण वासुदेव की मन्मुख जाने को नीकला ॥ १६८ ॥ पद्मनाभ राजा को आने हुवे देखकर कृष्ण वासुदेव बोलने लगे कि अहो बाल को ! पद्मनाभ की साथ तुम पहिले युद्ध करोगे अथा। पीछे सं? तब पांचों पांडवों कृष्ण वासुदेव से बोलने लगे कि अहो स्वामिन् ! पहिले हम युद्ध करेंगे पीछे से तुम करना. ॥ १६९ ॥ पांचों एडयों बक्खसर धारन कर यावत् अपने
at-AIR मग और रसाबले कि हम नहीं बना पानाभ नहीं
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसमायजी ज्वालाप्रसादजी.
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