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________________ सयमेव जुझसज्जे जिग्गच्छामि त्तिकटु, दारुयं सारहिं एवं बयासी केवलं भो ! रायसत्थेसु दूर अवझे त्तिकटु, असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं णिच्छुभावेति ॥ १६६ ॥ ततेणं से दारुएसारही पउमणाभेण जाव असम्माणिय असक्कारिय जाव णिच्छदे समाण जेणेव कण्हेवासदवे तेणव उवागच्छड रत्ता करयल जाव कण्ठं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु अहं सामी ! तुम्भं वयणेण जाव णिच्छुभावति ।। तएण से पउमनाभेराया बलवाउयंसहावइ २ ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अभिसक्क हत्थिरयणं पडिकप्पह, तयाणंतरचणं छेयायरिय उवदसमइ विकप्पणा विकप्पेहिं जाव उवणेइ ॥ १६७ ॥ ततणं से पउमणाहे रायासन्नद्ध जाब नहीं देउंगा. मैं स्वयमेव युद्ध में सज होकर नीकलूंगा. यों करके दारुण मारधीको कहा कि राज्य नति शास्त्र में मात्र दून अवध्य है. इस से उस का सत्कार सन्मान किये बिना छोटे द्वार से नीकाल दिया. ॥ १६६ ॥ पद्मनाभ राजा से सत्कार सन्मान रहित बना हुवा व छोटे द्वार से नोकाला हुआ। मारथी कृष्ण वासुदेव की पाम आया. उन को हाथ जोडकर कहने लगा अहो स्वामिन् ! आप के वचन से मैं अमरकंका नगरी में पद्मनाभ राजा की पास गया था. यावत् गुप्त द्वार से मेरे को 11 नीकाल दिया. ॥१७॥ इधर पद्मनाभ राजाने कटक के अधिकारी को कुलवाया और कहा कि 49H षष्टांग ज्ञानाधर्मकथा का प्रथम् अनसन्ध 41 43- द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन 42 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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