SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 660
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ romanam - ६६२ - 42 अनुवादक-बालब्रह्मनारीमुनी श्री अमोलक ऋषिनी + तभं चेवणं देवाणुपिया । एतं पुक्काम। ततेणं से कछल्लए नारए कर्णणे. वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे उप्पयणिविजं आवाहेति २ ता जमदसिं पाउब्भूए तामवदिसि पडिगए ॥ १५९ ॥ ततेणं से कण्हेवासुदेवे दूयं सद्दावइ २त्ता एवं क्यासी-गच्छहणं तुब्भे देवाणुप्पिया ! हथिणाउरं पंडुस्सरमो एयमटुं निवेएहि एवं खलु देवाणुपिया ! दोवति देवि धायइसड पुरथिबद्ध अमरकक ए रायहाणीए पउमणाभरस भवणंसि साहरिया; दोवतीए देवीए पउत्ती उबलद्धा,तगच्छ तुमंच पंडवा चाउरगिणीए सेणाए सद्धिंसपरिवुडा पुराच्छम बंथालीए मम पडिवालमाणा चिट्टतु वासुदेव उनारद को कहने लगे, अहो देवानुमिय ! यह राही कार्य होगा ? कृष्ण वासुदेव के ऐसा कहने पर वह नारद उत्पातिनी विद्या से उडकर जयं से आया था वहां पोछा गया ॥ १५९ ॥ तब कृष्ण वासुदेवने दूत बुलवाया. और कब कि अहो देवानप्रिय ! तुम हस्तिनापुर नगर में जाओ और पाण्डु राजा को इस बात का निवेदन करो कि अहो देवानांप्रय ! पूधि धातकी खण्ड के दक्षण भरत क्षेत्र की अमरकंका राज्यानी में पद्मनाभ राजा के भवन में द्रोपदी की मनसि बिली है. इन स पायों पांडवों चतुरांगनी सना माहित पूर्व के वेनोलिक समुद्र की पास जावे वहां पेरी या प्रतीक्षा करते हुो १ जहां समुद्र की वेल चलकर गंगा नदी में मिलती है वह स्थान. मानक-राजावहादर लालामुखतवमहायजी वाला सादजी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy