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________________ अंते उरगए उरोहे आव विहरति॥ इमंचणं कच्छल्लगारए जाव समोवतिए जाव णिसीसूत्र यइ २त्ता कण्हं वासुदेवं कसलोदंतं पुच्छइ॥ततण से कण्हे वासुदेवे कच्छलणारयं एवं वयासी-तुमणं देवाणप्पिया ! बहणि गामाणि जाव अणुपविससि, तं अत्थियाति ते कहिवि दोवती देवीए मुतिवा जाव उवलद्ध।ततेणं से कच्छलएणारए कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-एवं खलु देवाण पिया! अन्नयाकयाइ धायति संडेदीवे पुरथिमई दाहिणड्ढ भरहवासं अमरकंका रायहागि गए, तत्थणं मए पउमणाभस्स रण्णा भवणांस दोवती देवी जारिसिया दिट्ठपुवायावि. होत्था ॥ तएणं कण्हेवासुदेवे कच्छल्लं एवं क्यासी॥ १५८ ॥ एकदा कृष्ण वासुदेव अपने अंत:पुर में यावत् विचरते थे. उप समय कच्छल नारद यावत् Maai आये. यावत् अपना आमन:बिछाकर कृष्ण वासुदेव का. कुशलक्षेम पूछा. कृष्ण वासुदेवने कच्छल नारद को पूछा कि अहो देवानुप्रिय ! तुम बहुत ग्राम नगर यावत् बडे २.. राजाओं के 4 आवासों में फीरते होतो किसी स्थान द्रौपदीकी प्रवृत्ति का मालुमहुई है.तब वह कच्छुल कृष्णवासुदेव को ऐसा बोला कि अहो देवानमिय ! एकदा मैं पूरी धातकी खण्ड के दक्षिणार्थ भरत की अपरकका र.ज्य-17 | धानी में गया था. वहांपर पद्मनाभ राजा के भवन में द्रौपदी जैसी कोई दीखने में आई. नव कृष्ण 488 षष्टाङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतम्ध 400 48 द्रोपदी का सोलहवा अध्ययन 42 Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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