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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी १
पउमणाभा ! तस्स अगडददरस्स ॥ केणं देवाणुप्पिया ! से अगरददरे ? एवे जहा" मल्लिणाए, एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुदीवे २ भारहेवासे हथिणाउर नयर दुवयरस रण्णो धूया चुलणीदेवीए अत्तया पंडुस्स सुण्ड पंचण्हंपंडवाणं भारिया दोवतीणामदेवी रुपेणय जाय उक्किट्ठा उक्किट्टासरीरा दोवतीणं देवीणं छिण्णस्सवि पायंगुस्स अयंतव उरोह मयमकलणअग्घइ तिकट्ठ पउणाभं आपुच्छतिरक्षा जाव पाडगए।१४१॥ततर्ण से पउमणाभेराया कच्छुल्लणारए अतियं एयम? सोचा णिसम्म दावइए दवीएरूवेणय जोवण्णणय लावण्णणय मुच्छिए जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ २त्ता पोसह
सालं जाव पुन्व संगतियं देवं एवं क्यासी- एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबुद्दीवेदीव अहो देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेप में हस्तिनापुर नगर में द्रुपद राजा की कन्या, चूलणीदेवी की आत्मजा पाण्डु राजा की पुत्रवध, पांच पांडवों की भार्या द्रौपदी देवी है. वह रूप व लावण्यता यावत् उत्कृष्ट. उत्कृष्ट शरीरवाली है. इन के छेदे हुए पांव के अंगुठे जमी भी तुम्हारी कोई भी राणा न हो सकती है. यों कहकर पद्मनाभ गजाको पूछकर यावत् नारद पीछा गया ॥१४१॥ कच्छुल नारद की पास ऐसा मुनकर पमनाम राजा द्रौपदी राणी के रूप यौवन व लावण्यता में मूच्छित हुवा, वहांस पौषधशालामें आया.वहां अपने पूर्व परिचिव देक्का स्मरण किया अष्टमभक्त तप किया. अंतमें है।
माशाबडादर लाल नदव महाया मालाप्रसादजी.
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