SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 649
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्टांङ्ग ज्ञाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध भारदेवासे इत्थिणापुर जात्र सरीरा, तं इच्छामिणं देवाणुप्पिया ! दोवति देविं इह व्त्राणीयं ॥ १४२ ॥ ततेणं पुष्त्रसंगतिए देवे पउमणाभं एवं वयासी - नो खलु देवापिया ! एवं भूयं वा भव्त्रा भविस्संत्रा जेणं दोवती देवी पंचपडवे मोत्तूणं अन्नणं पुरिसेणं सद्धिं . उरालाति जाव विहरस्सइ तहवियणं अहतव पियट्ठाए दोवती इमाम चिकट्टु पउमणाभं आपुच्छइ २ ताए उक्किट्ठाए जाव लत्रण समुदं मज्झ मज्झणं जेणेव इत्थिनापुरे नयरे तेणेव पहारेत्थगमनाए ॥ १४३ ॥ वह देव आया. उसको पद्मनाभ राजा ऐसा कहने लगा कि अहो देवानुप्रिया जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में हस्तिमापुर नगर है वहां पाण्डु राजा की पुत्रवधू द्रौपदी यावत् उत्कृष्ट शरीरबाली है. अहो देवानुप्रिय ! उस | द्रौपदी को यहां लाने को मैं चाहता हूं ॥ १४२ ॥ उन के पूर्व मंगतिवाले देवने पद्मनाभ को ऐसा कडा, अहो देवानुप्रिय ! द्रौपदी देवी पांच पांडवों को छोडकर अन्य पुरुष की साथ भोग भोगवे बैता कदापि हुवा नहीं है, नहीं होता है व होगा भी नहीं. मैं तेरी साथ प्रीति होने के लिये द्रौपदी को यहां पर का दूंगा, यों कहकर पद्म भ्रम को पूछकर उत्कृष्ट दीव्य देवगति में लवण समुद्र की मध्यबीच में होता हुआ इस्तिनापुर नगर की तरफ जाने को नीकला ॥ १४३ ॥ उम्र काल उस समय में हस्तिनापुर नगर में Jain Education International For Personal & Private Use Only 434 द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन ६४१ (www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy