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पटांसाधर्मस्या का प्रथम श्रतस्कंध
कलह जुद्ध कोलाहलप्पिए भंडणाभिलासी, बहुमुयसमरसुय संपराएस दसणरए समंतओ कलहंसंदक्खिणं अणुगवेसमाणे, असमाहिकरे, दसारवरवीर पुरिसे तैलोबाबलबगाणं आमंतऊण तं भगवति परमाणे गमणागमण दत्तंउप्पइओ गण तल मभिलंघयंतो गामागरणगर खेड कन्नड मंडा दोणमुह पट्टणसंवाह सहस्म मंडियं थिमित मेइणीतलं सुहं उलोयंतो रम्मं हरिथणारं
उवागए पंडुरायभवणंसि अइवेगेण समोवपइ ॥१३१ ॥ ततेणं मुख इत्यादि साई तीन कोर कुमारों को बलभ था, उन कुमार को संस्तवन योग्य था, कलाकारी था, लोगों के प्रशंसनीय वचनों उनको पियकारी थे, मर से बसनों बोलने का अभिलाषी था, में वगैरह देखने का बहा उत्सुक था, जहां रनवेमांश करानेका तीन का धर्म था, काकी गोषणा करनेवाला था, असमाधि करनेवाला था.. वैसा नारद तीन लोक में बलवान् इशार वंश के वीर पुरुषों को भामंत्रण देकर गमनागमन में दक्ष प्रामिनी शिक्षा को अयुंजकर गगनतल को उलंघता हुवाब धील में ग्राम, भागर, नगर, खेड, कपट, मंडप, दोगमुख, पट्टण, मंड, सनिवेश वगैस को देखना हुन हस्तिनापुर कमर में पाया. और पाण्डुराजा के भुान में अतिवेग से प्रवेश किया ॥ १३ ॥
441 दीपदी का सोलहसाबध्ययन
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