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अनुवाहम-समचारी मुनि श्री मोडक अपिता
पियदसणे सुरूवे अमंडलसगल परिहिए कालमियं चम्म उत्तरासंग रइयवत्ये दंड कमंडलु हत्थे जडामउदित्तसिरए जण्णोवइयगणे त्तियमुंजमेहलबागलधरे हत्थ कयकन्छभीए पियगंधचे धरणि गोयरप्पहाणे, संवरणावरणउवयणुप्पयणिले सीणीमुय संकामणि अभिओग पण्णति गमणीयंभणीय बहुसुविजाहरीसु विजासु विम्सुयजसो, इ8 रामस्सय केसवस्सय दज्जुण्ण पईवसंब अनिरुद्ध णिसढ उपय
सारण गयसुमुह दुमुहाती जायवाणं अट्ठाणं कुमारकोडीगं हियय दइए संथाए, वाला था, सौम्य प्रियकारी दर्शनीय अच्छे रूपमाला यश, अच्छा, निर्मल अखंडित था. बल्कल पहिने हुए थे, मृगचर्म का उत्तरासन किया था, दंड कमंडल हाय में धारन किया था. जटा का मुकुट शिरपर था. गले
उपवीत धारनी थी, सच सरुद्र की मालाका पाभरणपहिना था. कंदोरके स्थान वरालकादोराबंधा था, । हाथमें कच्छपिका नामक तापसका उपकरण रहता था, इनका गमन पृथ्वी में बहुत कम होता था, संवरनी,
पावरनी. नीचे उतरने की, उपर चढ़ने की, संपनी, संक्रग्नी, भाभियोगिनी, मोना चांदी बनाने की पज्ञापिनी, स्तंभनि इत्यादि बहुत विद्याओं में विख्यात था. यह बलदेव व कृष्णवामदेव का प्रिय था, अतुम्न कुमार, प्रदीप कुमार, शंब कुमार, अनिरुद्ध कुमार, उम्पुखकुमार, सारनकुमार, गजमुकुपाल कुमार, मुमुख कुमार,
.पाचकराजाबहादुर डाला खदरसा
जी वालाप्रप्रदजी.
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