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________________ 448 ते वासुदेव पामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फबत्थ गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेति सम्माणेति सक्कारेत्ता समाणेता जाव पडि विसजेति २ ॥ ततेणं ताई वासदेव पामोक्खाइं बहुई रायमहस्साइ जाव पंडिगयाति ॥ १२८ ॥ ततेण पंचपंडवा दोवतीए देवीए सद्धिं कलाकलिं वारंवारेणं उरालाति - भोगभोगाति जाव विहरंति ॥ १२९ ॥ ततेणं से पंडराया अन्नया कयाइं पहि " पडवहिं कौतीए देवीए दोवईए · देवीए सद्धि अंतेउर परियाल सद्धिं संपरिघुडे सीहासणवरगया विहरंति ॥१३० ॥ इमंचणं कच्छल्ल णारए दसणेण अइभद्दए विणीए, अंतोय कलुसहियए मज्झत्यो उत्थिएय अल्ली। सोम १. मुख बहुत सनाओं को विपुल अशन, मन, खादिम, स्वादिप, पुष्प, वस्त्र, गंध, माला, व अलंकार से मत्कार सन्मान करके यावत् विसर्जित किये. तत्पश्च त वे वासुदेव प्रमुग्व. मब राजाओ अपने २ स्थान गये. ॥ १२८ ॥ पांच पांडवों द्रौपदी की साथ कालौकाल अपनी वारी मे भोगभोगते हो विचरते थे. ॥ १२१ ॥ एकदा पांडुराजा पांच पांडवों कुंतिदेवी व पदी देवी की साथ अंत:पुर में मब परिवार 3महित सिंहासन पर बैठे हुए थे. ॥१३०॥ इस ममय कच्छल्ल नारद आये. दीखने भनि भद्रिक, व विनीत 15थे परंतु उन का अंतःकरण कालुपता ब.ला था, मध्यस्थभाव वाला था, वस्तु षों में अलीन स्वभाव हाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध ;पदी का सोलहवा अध्ययन अर्थ / - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.ainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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