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ते वासुदेव पामोक्खे बहवे रायसहस्से विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फबत्थ गंधमल्लालंकारेणं सक्कारेति सम्माणेति सक्कारेत्ता समाणेता जाव पडि विसजेति २ ॥ ततेणं ताई वासदेव पामोक्खाइं बहुई रायमहस्साइ जाव पंडिगयाति
॥ १२८ ॥ ततेण पंचपंडवा दोवतीए देवीए सद्धिं कलाकलिं वारंवारेणं उरालाति - भोगभोगाति जाव विहरंति ॥ १२९ ॥ ततेणं से पंडराया अन्नया कयाइं पहि " पडवहिं कौतीए देवीए दोवईए · देवीए सद्धि अंतेउर परियाल सद्धिं
संपरिघुडे सीहासणवरगया विहरंति ॥१३० ॥ इमंचणं कच्छल्ल णारए
दसणेण अइभद्दए विणीए, अंतोय कलुसहियए मज्झत्यो उत्थिएय अल्ली। सोम १. मुख बहुत सनाओं को विपुल अशन, मन, खादिम, स्वादिप, पुष्प, वस्त्र, गंध, माला, व अलंकार से मत्कार सन्मान करके यावत् विसर्जित किये. तत्पश्च त वे वासुदेव प्रमुग्व. मब राजाओ अपने २ स्थान गये. ॥ १२८ ॥ पांच पांडवों द्रौपदी की साथ कालौकाल अपनी वारी मे भोगभोगते हो विचरते थे.
॥ १२१ ॥ एकदा पांडुराजा पांच पांडवों कुंतिदेवी व पदी देवी की साथ अंत:पुर में मब परिवार 3महित सिंहासन पर बैठे हुए थे. ॥१३०॥ इस ममय कच्छल्ल नारद आये. दीखने भनि भद्रिक, व विनीत 15थे परंतु उन का अंतःकरण कालुपता ब.ला था, मध्यस्थभाव वाला था, वस्तु षों में अलीन स्वभाव
हाताधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कंध
;पदी का सोलहवा अध्ययन
अर्थ /
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