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418+टांद्र द्वाताधर्मकथा का प्रथम स्कंध 446+
एय से दाहिणेण इत्थेण दरिसए पवर रायसीहे फुडावसय विसुद्ध रिभेय गंभीर महुर भणिया सा ते सव्यपत्थिवाणं अम्मापिडणं वंस सत्त सामत्थ गोत्तविनंति कति बहु वह आगम महापरून जोन्त्रण गुणलात्रष्ण कुलसील जाणिया किन्तणं करेइ ॥ ११६ ॥ पढमं तात्र वण्हिपुंगवाणं दसदसार वरवीरपुरिसाणं तेलोक्क बलवगाणं समय सहरसाणं माणोवमहमाणं भवसिद्धियत्ररपुंडरायाणं चिलगाणं बल वीरिय रूव जोवणगुण लावण्ण कितिया कित्तणं करेति ॥ ततो पुणो उग्गसेन
के विषय में स्फुट, विषाद, विशुद्ध, रिभित, गंभीर मधुर वचनों यात्री बोलने लगी. इन सब राजाओं के मात पिता के वश कहा, ये धर्मवत्र हैं बैमा बतलाया, बलवंत, पराक्रमवंत हैं, बहुत कीर्ति वाले है, बनेक प्रकार के शास्त्रों के ज्ञाता हैं, महामहिमावंत हैं रूप, यौवन गुण, लावण्य, कुल व शील वगैरह जा जानती थी उन का कीर्तन किया. ॥ ११३ ॥ प्रथम यादववंश में उत्पन्न होने वाले समुद्र विजयादि दश अथवा कृष्ण वासुदेव के प्रधानवीर पुरुषों का वर्णन किया. यः कृष्ण वासुदेव तीन भुवन में बलवंत हैं, लाखों शत्रुओं के मान का मर्दन करने वाले हैं, भव सिद्धिक पुरुषों में कमल समान है, उसका बल, वीर्य, रूप, यौवन, गुण, लावण्य व कीर्ती देदीप्यमान हैं यों उन का कीर्तन किया तत्पश्चात् उग्रसेन
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44+ ट्रैौपदी का सोलहवा अध्ययन +
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