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मुनि श्री अमोलक प्रतिषी
गयर मझमझ जेणेव समंडषे तेणेव उवागछइरह ठवेइ रहाओ पश्चारुहार चा किडावियाए लेहियाए साई संयंवरमंडवं अणुपविसतिरत्ता करयल तेसि वासुदेव पामक्खिाणं वहणं रायवरसहस्साण पणाम करति॥११४तएण सादोवती रायवस्कण्णा एगंमहं सिरिदामगंड किंते पाडल मल्लियं चपय जाव सत्तत्थयइहिं गंधणि मुगतं परमसुहफास परिसाणिजं गिण्हति ॥ १५॥ ततेणं सा किडाविया सुरूवा जाव वामहत्येण चिल्लगं दपणं गहेऊण सा सललियं दप्पणं संकेत बिंब संदसि
काराबापडाहरडाबाखदेवसहावजी ज्वारसाहनी
राज कम्पा कपिल पूर नगर की ड्य बीच में होकर सयंवर मंडप की पाम आइ और वहां ग्था खरा किया. वहां रथ से नीचे उना कर क्रीडा कराने वाली पात्री र दासि की साथ सवार मंडप में ससने प्रवेश किया. anf सने हस्तद्रय जोडकर कृष्णवासुदेव प्रमुख अनेक सास रानाओं को प्रणाम वि. ॥ ११४ द्रौपदी गणान्याने एक श्रीदाम नामक मंद लिया. पापा यावत् समर्थ वृक्षों । के पुष्पों मे गुथा हुआ मुगंध धान का विस्तार करने वाला, हष्ट मुख पर्व वाला ब दर्शनीय था..
१॥ ११५॥ अबक्रीराकगने वाली यात मुरूषा धात्री बांये हाथ मेंदीष्यवान अमि उमलदर्पण लेकर 13स में मो राबावों के प्रतिबिंब आते थे इस जीमने हाथ से लीला सहित बनाने लगी. राजाओं
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