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14 'माईण जायवाण भणति सोहाग रूंब कलिय वरहि 'बर पुरिस गंधहाणं जो हुने
होइ हिययदओ ॥ ११७ ॥ ततेणं सा दोवती रायवर कन्नगा वहूर्ण गयवर सहस्साणं मझंमज्झेणं समतित्थमाणी २ पुवकय नियाणेणं चाइजमाणी जेणे पंच पंडवा तेणेव उवागच्छइ २ ता ते पच पंडवे तेणं दसवण्णेणं कुसमदामेणं
आवेढिय परिवेढिय करति २त्ता एवं वयासी एएणं मए पच पंडवा बरिया ॥१२८॥ तलेणं ताई वासुदेवपामोक्खाणि बहुणिं रायसहरुमाणि महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणे २
एवं वयंति २ सुवरिये खलु भो दोवतीए रायवरकन्नाए तिकटु सयंवर मंडवातो . प्रमुख का कीर्तन किया. यादव कल में उन का जन्म हुआ हैं, सौभाग्य व रूप सहित प्रशानः गंधहस्ती समान यह उग्रसेन राजा इत्यादि हैं. ये तेरे हृदय को बल्लन होगा. ॥ ११७ ॥ अब ट्रैपदी गज कर सहस्र राजाओं का वर्णन सुनतो हुई अपने पूर्व नियाणा [ निदान के वश में पांच पांडवों का पाम आई. इन पांचों पांडवों को पांच वर्ण की पुष्प माला से वेष्टित किये और एमा वोली कि में इन पांचों पांडकों को वरी हूं ॥ १२८ ॥ वहां बैठे हुवे कृष्ण वासुदेव प्रमुख बहुत सहस्र गनाओं बडे २ शब्द मे बालने लगे कि द्रौपदी राजकन्या पांचों पांडवों को बरी यह अच्छा हुवा. यों कहकर स्वयंवर मंडप में से
44 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनी श्री अमोलक पनीर
काशक-राजाबहादुर लाला मुखद वहायजी याबासादजी
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