________________
-
nnar
-
अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
तावे करेत्ता पच्चीप्पणति ॥ १०३ ॥ ततेणं से दुवएराया वासुदेव पामोक्खाणं बहूणं रायसहस्साणं आगमणं जाणित्ता पत्तयं र हत्थिखधं जाव परिवुडे अग्घंच पजंच गहाय सव्विड्डीए कंपिल्लपुरातो णिगच्छति २ ता जेणेव ते वासुदेव पामोक्खा वहवेराय सहस्मा तेणेव उवागच्छइ २ ता ताई वासुदेव पामोक्खाई अग्घेण पजेणय सक्कारेइ सम्माणेइ सक्कारेइत्ता समाणइत्ता तसिं वासुदेव पामोक्खाणं.पत्तेयं २ आवासे विरयइ ॥ तएणं से वा देव पामोक्खा जणेव सयाई आवासाई तेणेव उवागच्छइ २ त्ता हस्थि
खंधेहितो पच्चारुहंति २ पवेयं २ खंधावार णिवेसं करेंति २त्ता सएसु २ आवासेसु भी वैसा हो करके उन की आज्ञा पीछी दी. ॥ १०३ व सुदेव प्रमख बहुत हजार राजाओं का आगमन जान कर व प्रत्येक २को अग्ने २ हाथो पर सार हुने यावत् परिवार सहित आते हुवे देखकर द्रुपद राजा पूनाका पुष्पादि सामान व पछी प्रपु.व लेकर अपनी सत्र ऋद्धि महिन कपिलपुर नगर की बीच में ही कर वासुदव प्रमुख राजाओं की पाम जाकर उन का पुष्पादि व पीछी प्रमुख से सरकार सम्मान किया, और उन सब को पृथक २ आवाम देदिया. वे वामदेव प्रमख सब राजाओं अपने २ आवास में आकर अपने २ हाथों पर से नीचे उतरे और वहां अपनी २ छावणी है।
वकाशक-राजाबहादुर लाला वदवसहायनीज्वालाप्रसादजी
અર્થ
-
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org