________________
?
44
+ षष्टांग ज्ञ ताधर्मकथा का प्रथप श्रुतस्कन्ध
ण्हाया सन्नहबद्ध हात्थिखंधवरगया हयगयरह महया भडचडकर पहकर सएहिरनगरहितो अभिणिग्गछंति २ ता जेणेव पंचाले जणवए तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ ...॥ ततेणं से दुवएराया. कौटुंबिय पुरिसे सहावेइ २ ता एवं क्यासी- गच्छहणं तुमे देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे बहिया गंगाए महानदीए अदुरसामंते एग महं सयवर मंडवं करेह अणेग खभ सय सन्निविटुं. लीलट्ठिय सालिभंजियागं जाव पच्चप्पिणति ॥ १०२ ॥ ततेणं से दुवएराया दोचंपि कोटुविय पुरिसे सदावेइ २त्ता एवं क्यासी. खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! वासुदेव पामोक्खाणं बहूणराय संहस्साणं आवसे करह कि ये और हाथी पर स्वार होकर घोडे, गन, रथ, भट. चेटक के परिवार से परिवरे अपनी २ नगरी से - नीकल कर पांचाल देश में जाने को प्रयाण किया. ॥ १०१॥ द्रुपद राजाने कोदुम्बिक पुरुषों को
लाकर कहा कि अहो दवानुप्रिय ! कपिल पुर नगर की बाहिर गंगा नदी की पास एक बड़ा स्वयंवर मंडप बनावो. उस में अनेक स्तंभ व क्रीडा करती हुई पुतलियों वगैरह कर मुझे मेरी अ.ज्ञा पीछी/ दो. यावन्, उनोंने वैसा ही करदिया. ॥ १.०२ ॥ द्रुपद राजाने दूसरे कौटुम्बक पुरुषों को बोलाये लाकर कहा भहो देवानप्रिय ! बामदेव प्रमुख बात इनार राजाओं के लिये आपात वैयार करो. नाना
पटी का सोलहवा अध्ययन
अर्थ
-
।
स
+
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org