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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
जाव समोसरह ॥ अटुमं दूयं कोडिगं णयर तत्थणं तुम हा भिमग सुर्य करयल जाव समोसरह ॥ गवमंदूपं विराडं गयरं तत्थणं तुमं कायगं भाउ सयसमग्गं करयल जाव समोसरह ॥दममंदूयं अवसेसे मु गामागरणगरेसु अणेगाइं रायसहस्सालि जाब समोसरह ।। ततेणं से दुए तहेव जिग्गछइ जेणेव गामागर नगर बहवे जाव समोसरह ॥ ततेणं ताई अणेगाइं रायसहस्साति तस्स दूयस्स अतिए एयमटुं सोचा णिसम्महट्ट तुट्ठा, तं दूयं सकारति सम्माणेति सकारेता समाणेत्ता
पडिविसज्जेति ॥ १०० ॥ ततेण ते वासुदेवे पामोक्खा बहवेरायसहस्सा पत्तयं २ को आमंत्रण दिया. सातवा दनको राजगृह नगरी में भेजा वहां महदेव राजा जरासंध के पुत्रको आमंत्रण दिया. आठवा दूत कोहीणी नगरी मेना वहां रूपी राना व भीष्पक पुत्रको आमंत्रण दिया. नववाद को विराद नगरी में भेजा वहां कीचक राजा व उन के सो भाइयों को आमंत्रण दिया. और दशा दूतको | रोवे ग्राम आगर नगर में अनेक अन्य राजाओं को आमंत्रण देने के लिये भेजा. वे दून
अपने गह मे मीकलकर ग्राम आगर नगर में बहुन राजाभो को आमंत्रण करने लगे. व राजाओं भी उस दूनकी पाम से ऐसा सुनकर इष्ट तुष्ट हुए और उस दूनका सत्कार सम्मान करके उसे विसर्जित किया. ॥ २० ॥ अव वासुदेव प्रमुख बहुत हजार राजाओंने स्नान किया, क्वच पहिना, शखो धारण है।
प्रकाशकन्जाबहादुर लाला मुखवसहायनी कालाप्रसादजी
मर्थ
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