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48 पटङ्गताधर्मकथा का प्रथम श्रतस्कंध 424
करयल जात्र कटु, तहेव जाव समोसरह॥ततेणं से दए एवं वयासी-जहा वासुदेवं णवरं भेरीणत्थि जाव जेणेव कपिलपुरे णयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए॥९९॥एएणव कामणं तच्चं दुयं चंपाणयरिं तत्थंगं तुमं कण्ण अंगरायं सलंगंदिरायं करयल तहेव जाव समोसरंह ॥ चउत्थं दूयं सोत्तिमइ णयरिं तत्य तु निपालं दमघोस यं च पंचभाइसय संपरिबुड करयल तहेव जाव समोसरह ॥ पंचमं दूय हस्थितीसं नयरं तत्थगं तुमं दमदंत. रायं करयल जाव समोसरह ॥ छट्दयं महरिनारे तत्थणं तुम धररायं करयल जाव
समोसरह ॥ सत्तमं यं रायगिहं नयर तत्थणं तुम सहदेवं जरासिंधपुयं करयल होगा, इस से आप शीघ्रमेव वहां पधरो. टून राजा की आज्ञा मुन कर वहां जाने को नीकला वगैरह सद वर्णन प्रथम दून जपे कृष्ण वासुदेव की पाम गया था वैसे ही कहना. परंतु वहां कृष्ण बासदेवने । भी बनाइ थी यहां भेग का शब्द कहना नहीं यावत् मव कंपिल पुर नगर जाने को नीकले. ॥ ११ ॥ इसी तरह तीसरे दूनको चंपानगरी में जाने का कहा. कां करण रानी अंग राजा सलानंदी राजा को आने का आमंत्रण किया. चोथा दूतको सोक्तिमति नगरी में जाने का कहा. वहां शिशुपाल गजा व पांचों भाइ सहि। दमघोष पुत्र को हाथ ज.डकर आने का आमंत्रण किया. पांचवा दूत को हस्तिशीर्ष नगर में जाने को कहा. वहां दमदंत राना आरंग दिया, छादु को मथुग नगरी में भेजा वहां पर राजा
द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन
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