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44+ पष्टांङ्ग ज्ञावाधर्मकथा का प्रथम श्रुतस्कन्ध 48
धोवति, गुज्झतराई धोवति; जत्थणं ठाणंवा सेज्जंवा निसीहियंवा चेएति तत्थ त्रियणं पुत्रामेव उदएणं अब्भुक्खित्ता ततोपच्छा ठाणंत्रा सेज्जंवा निसीहियवा चेइए ॥ ८१ ॥ ततेणं ताओ गोवालियाओ अजाओ सुमालियंअजं एवं वयासीएवं खलु देवाणुया ! अम्हे समणीओ णिग्गंथीओ इरिया समियाओ जान भर धारिणीत णो खलु कप्पइ अम्हं सरीरपाउसियाए हात्तए, तुमंचणं अजे ! सरीर पाउसिया अभिक्खणं २ इत्थेधोवसि जाव चेतिसि, तं तुमणं देवाणुप्पिए ! एयरस ठाणरस आलोएहि जान पडिवज्जाहि ॥ ८२ ॥ ततेणं सुमालिया अजा गोवालियाणं अज्जाणं
गुह्यांतर धोने लगी, और जिस २ स्थान स्वाध्याय, ध्यान व कायोत्सर्ग करे. उस स्थान पानीका छिटकान करने {लगी ॥८१॥ सत्पश्चात् गोवालिका आर्याने सुकुमालिका आर्या को ऐसा कहा अहो देवानुप्रिय ! अपन श्रमण निर्यस्थिनियों ईर्यासमिती यावत् गुप्त ब्रह्म वारिणि यों हैं. अपन को शरीर की दुगंछा करना नहीं कल्पना है. अहो {देवानुभिये ! तुप शरीर की दुर्गछा करने वाली हुइ हो और इस से वारंवार हाथ घोती. हो यावत् स्वाध्याय, ध्यान क कायोत्सर्ग के भी स्थान को धोकर करते हो, इस से अहो देवानुप्रिये ! तुप इस की आलोचना करो { यावत् प्रायच्छित अंगीकार करो. ॥८२॥ सुकुमालिकाआर्जिकाने गोवाहिका आर्या के इन वचनों की श्रद्धा
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448+ द्रौपदी का सोलहवा अध्ययन 42
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