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+ अनुवादक-बालब्रह्मकरी मुनि श्री अमोलक ऋमिना
गोटिल पुरिसेहिंसद्धिं उरालहि माणुस्सणाई भोगाइ जमाणि पासइ २ ‘त्ता इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए' पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पजित्था अहोणं इमाइत्थिया पुरापोराणाणं जाव विहरइ, तं जइणं मे इमस्स सुचरियरस तवणियमबंभवेरवासस्स कल्लाणे फलावितिविसेसे अस्थि तोणं अहमवि आगमिस्सेणं भवग्गहणणं इमेयारूवाई उरालाई. माणुस्सग्गाई जाव विहरेज्जामि तिकट्टु नियाणं करेइ २ ता आयावणभूमिए पच्चोरुहइ ॥ ८.॥ तएणं सा सुकुमालियाअजा सरीर पाउसिया जायायाविहोत्था-अभिक्खणं २
हत्थे धावति, पाएधोवति, सीसंधोवति, मुइंधोवति, थणंतराइं धोवति, कखंतराई देखकर ऐमा विचार हुवा कि इस स्त्री को धन्य है. यह अपने पूर्व भव के मुख भोगवती हुई कैसे विचर रही है. यदि मेरे अच्छे आचरणवाल तप. नियम व ब्रह्मचर्यका फल होता तो मैं भी आगामिक भव में ऐमा ।
मनुष्य संबंधि भोग भोगवती हूई विचकं. यों करके उस सुकुमालिका आणिकाने निदानकिया.और आतापना *भूपि में से पछिी आइ.॥तत्पश्चात मुकुमालिका आर्या शरीरकी दुगंछा करनेवाली हुई, उपचारित्रविराधना करने
लगी वारंवार हाथ धोने लगी. पारंवार पांच धोने लगी, वारंवार मस्तक धोने लगी, वारंवार मुख धोने लगी ।
पकाधक राजावहारमा मुखदवसहायजी ज्वालपसादजी
લઈ
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