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________________ . ६०१ षष्टांग ज्ञाताधर्मकथाका प्रथम श्रुतस्कंध 4 वेसविहार कणिकया णामाविह अविणयप्पहाणा अड्डा जाव अपरिभया ॥ ७७ ॥ तत्थणं चंपारणयरीए देवदत्ताणामं गणिया होत्था, मुकुभाला जहा अडणाए ॥ ७८ ॥ तएणं तीसं ललियए गोट्ठीए अण्णयाकयाइं पंचगोट्ठीलगपुरिया देवदत्ताएगणियाएमहिं सुभुमिभागस्म उजाणसिरि पच्चणुब्भवमाणा विहग्इ, तत्क्षणं एगे गोहलपुरिसे दवदत्तं गणियं उच्छो धरइ, एग पुरिसे रिट्टओ आयछत्तं धरइ. एगे पुरिसे पुष्फपुरिअं रयइ, एगे पुरिसे पायेरयइ, एगे पुरिसे चामरुक्खेवं करेइ ॥ .७९ ॥ तएणं सा सुकुमालियाअज्जा देवदत्तंगणियं तेहिं पंचहिं खज्ज संबंधि से लज्जा राहत हुने थे. वे लोगों के बृद में निवास करते थे, विविध प्रकार के अविनय से प्रधान ऋद्धिवंत यावत् अपराभून थे. ॥ ७७ ॥ चंपानगरी में देवदत्ता नामक गणिका रहती थी. वह सुकोमल वगैरह अण्डे जैसी पी. ॥ ७८ ॥ एकदा उनक्रीडा करने वाल पुरुषो में से पांच पुरुषों देवदत्ता गणिका की साय सुभूमि भाग उघान की शोभा अनुभवत हुवे विचर रहे थे. उस में एक पुरुष उम देवदत्ता मणिका को उत्संग (गोद ) में बैठा है, एक पुरुष शिरपर छत्र रखता है, एक पुरुष पुष्पं सर पूरित मस्कत शिखर बनाता है. एक पुरुष अलतादि से उसके पांव रंगता है, व एक पुरु। चामर धारणकर V. रिखता है,॥७२॥ इस तरह पांच गोहिल्ल पुरुषोंकी साथ मनुष्य संबंधि भोगोपभोगभानी हुई उस वैश्या को भद्रोपदी का सालहवा अध्ययर 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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