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________________ पजिलाधर्षकथा का प्रथम श्रतस्य HD पासे अपासमाणी तलिमातो उट्ठति २ जेगेव सए सयणिब्बे तेणेव उभगच्छइ २त्ता सागरस्म दारयस्त पासेणुवजई २ ॥ ततेग से सागरएदारए सुमालियाए दारियाए इमंघारू अंगफार्म पडिमवेदेति जाव अकामए अबव्व से मुइत्तमत्तं चिटुति ॥ ५२ ॥ ततेणं से सागरएदारए सुमालियंदारयं गुहएसुसं जाणित्ता सयणिजाओ उद्वेति सयणिजाओ उर्दुत्ता वासघरस्स दारं विहाडति २ त्ता मारामुक्केविवकाए ___ जामेवदिसि पाउम्भूया तामेवदिमि पडिगया ॥५३॥ लएणं सा भुकुमालिया दारिया ततो महत्ततररस पडिबुद्धा पतिवया जाव अपासमाणी सयाणजाओ उट्ठति २ चा सागरस्म से उन के शयन में गइ और वहाँ मागर कुमार की पाम उसने शयन किया. वहां पास सोने से मागर कुपारने सकुमालिका का अभिधारा जैना यावत् अनिष्ठतर अंगपर्श का बनूभा किया. यावत् अनिच्या पूक परवंश पसा हुवा वहां थोडीदेर तक ठहर गया. ॥ ५२ ॥ वहां पर सुकुमारिका पुत्री को सख से दाधित जानकर अपने शयन में उठा, रहने के गृह के द्वार खोले और जो बधस्थान में से पाणि मुक्त होने से मग माता हे मे ही या जहां से पाया था वहां चला गया. ॥५३॥ थोडीदेर से वा सुकुमालिका जग्रत हुई. वा पतिव्रता यावत् अपने पति को नहीं देख सकने से अपने भवन से उठी. और सागर .. पदी का मेलिया अध्ययन 48+ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600253
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages802
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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