________________
सूत्र
अनुवादकसरी मुनि श्री ऋषिजी
मुकमालिया सार्द्धं जेणेव वासघरे तेणेव उवागच्छद्द २, मुकुमालियाए दारियाए सद्धिं तलिमंसि विज्जइ ॥ ४९ ॥ तए से सागरए दारंए सुकुमालियाए दारियाए इमं एयारूवं अंगका पडिसवेदेइ मे जहानामए असिपचेतिवा जात्र अमणाम तर एचत्र अंगफालं पचत्रमाण विहरड़ ॥ तं से सागरए दारए तं अंगफासं अमहमागे असमुह नमित्त वि॥ि ५० ॥ ततेनं से सागरए दारए मुकुमालियं दाग्धिं मुहमत जाति कुमालिया दरियाए पासाओ उट्ठेति२ चा जेणेव सए मयणिज तणेव उब: गच्छइ २ प्ता मयणिजति विज्जति ॥ ५१ ॥ ततेणं सा सुकमालिया दारिया ततो मुहुतं रस्म पडिवुद्धा समाणी पतिवया पतिमणुरत्ता पति की सब अपने गृह में गया. और यहां कपालिका की माथ पलंग शयन किया. ॥४२॥ सुकुमपालिका कन्या का अति अगर अंग स्पर्श अनुभवता हुआ रहा. एस स्पर्श नहीं सहन होने परमो पर पडः हः मुहूर्त साथ रहा. ॥ ५० ॥ सुकुमालि का पुत्री को सुखम मोती हुई देखकर सागर {पुत्र उन की पान में उठकर अपने शयनगृह में गया. और वहाँ सो गया. ॥ ५१ ॥ वहाँ सुकपालिका [पुत्री अल्प समय में जाग्रत हुई. वह पता व पति में प्रासक्त कन्या पति को अपने पलंग में नहीं देखन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
• प्रकाशक राजावादळाला देवमहायजी माजी ●
५८६
www.jainelibrary.org